पूस की रात कहानी का सारांश व समीक्षा | Summary & Review of Story Poos Ki Raat by Premchand


पूस की रात कहानी का सारांश व समीक्षा | Summary & Review of Story Poos Ki Raat by Premchand


Poos ki Rat



किसान कितना महत्वपूर्ण है? how important is the farmer?

दुनिया का प्रत्येक प्राणी प्रथमिक रूप से सारी मेहनत भोजन के लिये ही करता है। इंसान की भी यही इच्छा होती है कि सुबह उठने के बाद भोजन मिल जाए और शाम को भूखा ना सोना पड़े। जिस व्यक्ति को यह ख्याल नहीं आता कि सुबह उठने के बाद भोजन मिल जाए और सोने से पहले भोजन मिल जाए वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से जानता है कि मुझे भोजन मिल ही जायेगा। 

इंसान कि भोजन के अतरिक्त भी अन्य आवश्यकताएँ होती है लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि भोजन प्रथमिक है। प्रत्येक व्यक्ति भोजन के लिये मेहनत करता है। भोजन की प्राप्ति अनाज से होती है और अनाज प्राप्त करने के लिये खेती करनी होती है। खेती करने वाला किसान यदि खेती ना करे तो अन्य नौकरी पेशा व्यक्ति चाहे कितनी भी मेहनत कर ले उसे भोजन प्राप्त नहीं हो सकता। परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि किसान का स्थान विशेष है। 

प्रेमचन्द जी द्वारा लिखी कहानी “पूस की रात” पढ़कर ऐसा लगता है कि जो किसान पूरे समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखने योग्य है। वह किसान जो पूरे समाज कि प्रथमिक आवश्यकता पूरी करने के लिये मेहनत करता है। वह खुद कितने कष्टों में रहता है।  


पूस की रात कहानी का सारांश Summary of Story Poos Ki Raat 

कहानी का नायक हल्कू व नायिका उसकी पत्नी मुन्नी है। हल्कू व उसकी पत्नी मुन्नी ने तीन रूपये कम्मल लाने के लिये जोड़े थे। एक दिन अचानक सहना घर आ गया, जिसे बाक़ी (कर्ज) देना था। रूपये कम्मल खरीदने के लिये जोड़े थे, जिसकी अभी सबसे अधिक जरूरत थी परिणाम स्वरूप मुन्नी ने रूपये देने से मना कर दिया। हल्कू के निवेदन करने व यह कहने पर कि यदि रूपये ना दिये तो वह गाली देगा, मुन्नी ने रूपये निकाल कर हल्कू को दे दिये। अर्थात कर्ज़ चुका दिया गया। 

फसल की निगरानी करने के लिये हल्कू पूस की रात में अपने खेत के किनारे खाट पर सोता है। उसके पास मात्र एक चादर थी। सर्दी अधिक होने के कारण वह कांप रहा था। जिस खाट पर हल्कू लेटा था उसी खाट के नीचे (कुत्ता) जबरा भी सिकुड़ कर लेटा था। हल्कू जबरा से ऐसे बातें करता है जैसे किसी मित्र से कर रहा हो। यह कहा जा सकता है कि जबरा हल्कू का साथी था। हल्कू सर्दी को कम करने के लिये चिलम पिता है। चिलम पीने के बाद निश्चय कर लेता है कि अब सो जाऊंगा। 

हल्कू को सर्दी इतनी लग रही थी जैसे शरीर में रक्त की जगह हिम बह रहा हो। हल्कू ने पेड़ के गिरे पत्ते इक्ट्ठे किये और आग लगाई ताकि उसे थोड़ी गर्मी मिल सकें। कुछ ही देर में आग ठंडी हो गई। हल्कू आग के पास ही लेट गया। जैसे-जैसे सर्दी बढ़ रही थी वैसे-वैसे हल्कू दो आलस आने लगा। 

अचानक जबरा खेत की तरफ़ भागा। हल्कू को भी आंदाज़ा हो गया कि खेत में नील गया आ गईं। जिनके चरने की आवाज़ आ रही है, लेकिन यह सोचकर कि जबरा के होते हुए गया कैसे आ सकती है। उसने गया के चरने की आवाज़ को नज़रअंदाज कर दिया।  

जबरा लगातार भौंक रहा था। हल्कू समझ गया कि खेत जानवरो द्वारा चरा ही जा रहा है परिणाम स्वरूप वह उठा खेत ओर दो-तीन कदम चला ही था कि उसे इतनी सर्दी लगी कि दोबारा वह बुझी हुई आग के पास बैढ गया। 

लगातार जबरा चिल्ला रहा था, नील गया खेत चर रही थीं लेकिन जबरा नहीं उठा और वहीं राख के पास चादर ओढ़ के सो गया। 

सुबह जब हल्कू की आँख खुल तो धूप निकल चुकी थी। मुन्नी भी खेत पहुँच गई। हल्कू से कहने लगी तुम्हारे यहाँ मड़ैया डालने का क्या फायदा हुआ। 

पत्नी के गुस्से से बचने के लिये हल्कू ने कहा रात मुझे बहुत पेट दर्द हो गया था। मैं मरते-मरते बचा हूँ। मुन्नी उदास थी लेकिन हल्कू प्रसन्न हो गया कि रात को ठंड में यहाँ नहीं सोना पड़ेगा। मुन्नी ने दुखी होकर कहा मजदूरी करके काम चलाना पडेगा। 


पूस की रात कहानी की समीक्षा Review of Story Poos Ki Raat 

कहानी की नायिका मुन्नी जानती थी कि यादि उसने पैसे दे दिये तो कम्मल नहीं खरीद पाएंगे लेकिन फिर भी मजबूर होकर उसने पैसे दे दिये। 

पूस क सर्दी भरी रात में एक जबरा ही हल्कू का साथी है। स्थिति इतनी कष्ट पूर्ण है कि सर्दी के कारण हल्कू को यह एहसास भी नहीं हुआ कि जबरा के अन्दर से अच्छी महक नहीं आ रही। बल्कि जबरा और हल्कू दोनों को एक दूसरे के समीप रहकर सुखद अनुभुति हो रही थी। 

एक तरफ़ मुन्नी उदास है कि अब क्या होगा हमें मजदूरी करनी पड़ेगी। दुसरी तरफ़ हल्कू प्रसन्न है कि अब रात को ठंड में उसे यहाँ नहीं सोना पड़ेगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि इतनी अच्छी तैयार फसल नष्ट होने से ज्यादा दुखदायी हल्कू के लिये बाहर ठंड में बिना कम्मल के सोना था। 


निष्कर्ष conclusion

इस कहानी के परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट है कि किसानों कि स्थिति अच्छी नहीं है। वह समाज कि प्रथमिक आवश्यकता पूर्ण करने के क्षेत्र में कार्य कर रहें हैं। उसके बाद भी उन्हें इतने कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। 

यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा लिखी गई है। इसका अर्थ है कि स्वतत्रंता से पूर्व किसानों कि स्थिति लगभग ऐसी रही होगी। वर्तमान में कितना सुधार हुआ है? साहित्य समाज का दर्पण है। परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि साहित्य में जो कुछ लिखा गया है उसके मोती समाज से ही उठाये गये हैं। 

वर्तमान में “आज़म कादरी” जी का लिखा नाटक “मौसम को ना जाने क्या हो गया”  इसमें भी किसानों कि स्थिति को दिखाया गया है। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आज भी किसानों की स्थिति पर विचार व सुधार करने की आवश्यकता है। 


Sunaina



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