हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता की व्याख्या व समीक्षा (Class 7 NCERT)


हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता की व्याख्या व समीक्षा | Explanation and review of the poem of Hum Panchi Unmukt Gagan ke


सुख या सुविधाए क्या चाहिये? 

हम जब भी बात करते हैं तो कहते हैं कि सुख-सुविधाए चाहिये। जब अनुभव करने की बात आती है तो यह समझना थोड़ा कठिन हो जाता है कि सुविधाओं में सुख है या सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये प्ररिश्रम में सुख है। समान्यतः एक मजदूर या अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे व्यक्ति की चाह होती है कि उसके पास बहुत सुन्दर पक्का मकान हो, ऐसी हो, फ्रिज हो, सहायता के लिये नौकर हों खाने को लिये मन चाहे व्यंजन हों। परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि एक गरीब व्यक्ति को सुविधाओं में सुख दिखाई देता है।

दूसरी तरफ समाज का वह वर्ग है जिसके पास विलासिता की सारू वस्तु मौजूद हैं अर्थात सारी सुख-सुविधाएँ हैं उनके पास हैं। सुविधाओं में रहकर जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति भी सुख की तलाश में रहता है यह कहूँ कि सुख के इंतज़ार में रहता है। 

परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि समाज का एक वर्ग सुविधाओं में सुख देखता है और दुसरा वर्ग सुविधाओं में जीवन व्यतीत करने के बाद भी सुख की तलाश करता है। आप अपने अनुभव से तय कीजिये कि सुविधाओं में सुख है या सुविधाओं के लिये की गई मेहनत में सुख है। दोनों में से किस स्थिति में आप समान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं? खुश रह सकते हैं? सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ड्रिप्रेशन से बचे रह सकते हैं?



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स्वतंत्रता का महत्व? Importance of independence?

मेरा प्रश्न समाज के प्रत्येक वर्ग से है, यादि हमें सारी सुविधाएँ मिल रही हों किसी बंगले में रहने को मिले, सोने की कटोरी में खाने को मिले, हर वह चीज खाने को समाने आ जाएँ जो हम खाना चाहते हैं। हमें कोई काम ना करना पड़े हमारे सारे काम करने के लिये नौकर 24 घंटे हमारे समाने मौजूद हों। इन सारी सुविधाओं के बदले हमसे हमारी आजादी छीन ली जाती अर्थात हमे एक सुन्दर से घर (महल) में बंद रहना पड़ता तो क्या इन सुविधाओं में हमें सुख की प्राप्ति होती? विचार कीजिये। 

हम बात कर रहें हैं “शिवमंगल सिंह सुमन” की लिखी कविता “हम पंछी उन्मुक्त गगन के”  कविता की जिसे कक्षा 7 के पाठ्यक्रम में लगाया गया है।  


हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता | Hum Panchi Unmukt Gagan ke


हम पंछी उन्मुक्त गगन के 

पिंजरबद्ध न गा पाएँगै,

कनक-तिलियों से टकराकर 

पुलकित पंख टूट जाएँगे।

व्याख्या – पक्षी अपनी स्थिति बताते हुए कह रहें हैं कि, हम पक्षी आसमान में उडने वाले हैं। पिंजरों में हम गा नहीं पाएँगे (खुश नहीं रह पाएँगे) पिंजरा यादि सोने का भी हो तब भी (कनक तिलियो) पिंजरे से टकराकर हमारे नाज़ुख पंख टूट जाएँगे। 


हम बहता जल पीनेवाले 

मर जाएँगे भूखे-प्यासे,

कहीं भली है कटुक निबोरी 

कनक-कटोरी की मैदा से,

व्याख्या – हम बहता जल पीने वाले अर्थात नदी का पनी पीने वाले भूखे और प्यास से ही मर जाएँगे। सोने की कटोरी में मैदा खाने से कही ज्यादा अच्छा है नीम की कड़वी निबोरी खाना। परिणाम स्वरूप पंछी कह रहें हैं कि हम भूखे प्यासे मरना पंसद करेंगे लेकिन गुलामी पसंद नहीं करेंगे। 


स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में 

अपनी गति, उड़ान सब भूले,

बस सपनों में देख रहें हैं 

तरू की फुनगी पर के झुले।

व्याख्या – पंक्षियों का कहना है कि सोने के पीजरे में हम अपनी उड़ान भूल गये हैं। पेड़ की ऊँची-ऊँची डालियों में झूलना बस सपनो में ही देख रहें हैं। 

 

ऐसे थे अरमान कि उड़ते 

निल गगन की सीमा पाने,

लाल किरण-सी चोंचखोल 

चुगते तारक-अनार के दाने।

व्याख्या – पिंजरे में आने से पहले अरमान थे कि नीले आसमान की सीमा नाप लेंगे। अपनी लाल चोंच से तारे जो अनार के दाने जैसे दिखते हैं उन्हें चुगते। अब यह एक सपना है।  


होती सीमाहीन क्षितिज से 

इन पंखों की होड़ा-होड़ी 

या तो क्षितिज मिलन बन जाता 

या तनती साँसों की डोरी। 

व्याख्या - पंछी कह रहें हैं कि यादि हम आजाद होते तो आकाश की सीमा पार कर लेते। (सीमाहीन क्षितिज) आसमान से पक्षियों की प्रतिस्पर्धा होती। इस प्रतिस्पार्धा में आसमान नाप लेते या तो (तनती साँसो की डोरी) हमारा जीवन संकट में आ जाता। 


नीड़ न दो, चाहे टहनी का 

आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,

लेकिन पंख दिए हैं, तो 

आकुल उड़ान में विघ्न न डालो। 

व्याख्या – पंछियों का कहना है कि चाहे हमें रहने के लिये घर ना दो। हमारे घोसले नष्ट कर डालो, लेकिन ईश्वर ने पंख दिये हैं तो उड़ान में रूकावट मत पैदा करो। हम पंछी हैं हमारा काम ही है उड़ना, हमें उड़ने दो। 


हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता की समीक्षा review of the poem of Hum Panchi Unmukt Gagan ke

कविता में कवि नें पक्षियों के माध्याम से स्वतंत्रता के महत्व को बताने का प्रयास किया है। यादि सारी सुविधाएँ प्राप्त हों जाएँ लेकिन बदले में हमारी आजादी हमसे छीन ली जाएँ तो वह मंजूर नहीं हैं। चाहे वह पंक्षी हो, जानवर हो या इंसान हो। 

यह कविता पर्यावरण की ओर भी अपना ध्यान केंद्रित करती है। वर्तमान में जानवरो को पंक्षियों को पिंजरे में बंद करने का चलन शुरू हो गया है। यादि इसी तरह मानव अपनी खुशी के लिये प्रकृति में मौजूद जीवों को पिजंरे में बंद करता रहेगा तो जिस जीव को पिंजरे में बंद कर दिया गया है उसकी भुमिका कौन निभाएगा?  पर्यावरण तो प्रभावित होगा ही साथ ही जीवन चक्र का क्या होगा?

ईश्वर ने इस संसार में अनेक जीवों की रचना की है जिसकी गिनती करना तो दूर प्रत्येक जीवों की जानकारी भी हम इंसानो को नहीं है। प्रत्येक जीव की प्रकृति में अपनी अहम भूमिका है। चाहें वह छोटी सी चीटी ही क्यों ना हो। विचार कीजिये, अनुसंधान कीजिये की यादि चीटी ना हो तो पर्यावरण कैसे प्रभावित होगा और उसका हम इंसानो को क्या नुकसान होगा। किसी मानव को कोई अधिकार नहीं है कि वह संसार में मौजूद किसी भी जीव के प्राकृतिक कार्य में बाधा बनें। मानव माने या ना माने वर्तमान या भविष्य में अपने द्वारा किये प्रकृति के अन्य जीवों के साथ किये अनैतिक कार्य का नुकसान हमें ही झेलना पड़ेगा।


निष्कर्ष  Conclusion -

संसार में मौजूद प्रत्येक प्राणी को स्वतत्रता का अधिकार है। किसी की स्वतंत्रता को छिनने का अधिकार ना किसी व्यक्ति को है, ना किसी समुदाय को, ना किसी देश आदि को है।  


कविता का सोर्सः

यह कविता NCERT हिन्दी कक्षा 7 के पाठ्यक्रम से ली गई है। 

हम पंछी उन्मुक्त गगन के यह कविता शिव मंगलसिंह  'सुमन' द्वारा लिखी गई है।


By Sunaina



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