बूढी काकी कहानी का सारांश व समीक्षा | Summary & Review of Story Budhi kaki by Premchand


संतान अपने माता-पिता को बेसहारा क्यो छोड़ देती है?|Why do children leave their parents for support?

संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक जीव की सीमित आयु है, किसकी कितनी आयु है यह किसी को नहीं पता है परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि दुनिया में रहने वाला प्रत्येक प्राणी मेहमान है। जब यहाँ प्रत्येक प्राणी मेहमान है। इक ऐसा मेहमान जो कितने दिन का मेहमान है उसे पता ही नहीं है, तो उसे सम्पत्ति का इतना लालच कैसे हो सकता है कि वह अपने माता-पिता की ही सम्पत्ति से उन्हें दो रोटी भी न खिला सकें? 

हम नहीं जानते की आपके परिवेश में आपको क्या देखने को मिल रहा है। इतना तो स्पष्ट दिखाई देता ही है कि वह संतान जो इस दुनिया में आने के लिये अपने माता-पिता पर निर्भर थी, जिनकी परवरिश उनके माता-पिता ने अनेक कष्टों से की वही संतान अपने माता-पिता के आखिरी समय में उन्हें सम्मान की दो रोटी देने से भी कतराती हैं?

दुनिया की प्रत्येक संतान की बात नहीं की जा रही है। दुनिया में ऐसी संताने भी मौजूद हैं जो अपने माता-पिता को ईश्वर से कम नहीं मानतीं।

हम इस सत्य को झुटला नहीं सकते कि समाज में बुजुर्गों की स्थिति भी उतनी ही विचारणीय है जितनी अनाथ बच्चो की है।   

जब तक संतान को माता-पिता की मौजूदगी से लाभ प्राप्त होता है तब तक तो स्थिति समान्य रहती है लेकिन जैसे ही माता-पिता को संतान की जरूरत पड़ती है माता-पिता संतान पर बोझ बन जाते हैं। 

इसकी स्पष्ट झलक देखने को मिलती है “प्रेमचंद” जी की लिखी कहानी “बूढी काकी” में  जिसमें बूढी काकी के साथ उनके भतीजे द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता है। 


Budhi kakai by Premchand
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बूढ़ी काकी कहानी का सारांश 

यह काहानी है बूढ़ी काकी की, जिनके पति को स्वर्ग सिधारे बहुत समय हो चुका था। बेटो की भी मृत्यु हो गई थी। परिवार में अपना कहने को कोई था तो एक भतीजा जिसका नाम पंडित बुद्धिराम था। पंडित बुद्धिराम ने बहला-फुसला कर काकी से सारी सम्पत्ति अपने नाम लिखा ली थी। सम्पत्ति लिखाते समय उसने काकी से बहुत लम्बे-चोड़े वादे किये, काकी से कहा की तुम्हें कोई तकलीफ ना होगी। सम्पत्ति अपने नाम करा लेने के बाद बुद्धिराम व उनकी पत्नी रूपा का व्यवहार काकी के प्रति कठोर हो गया। कहा जाता है कि बच्चे बूढ़े एक समान होते हैं परिणाम स्वरूप काकी की स्थिति भी वैसी ही हो गई थी। अब उन्हें खाने के अतरिक्त किसी और चीज की चाह न थी। दुखद यह की जिस काकी सम्पत्ति से बुद्धिराम व रूपा दोनों सुख-सुविधाओं का अन्नद ले रहे थे उसी काकी को पेट भर भोजन भी नहीं देते थे। माता-पिता का ऐसे स्वरूप को देखते हुए बच्चे भी काकी का सम्मान नहीं करते थे। कभी उन पर पानी की कुल्ली करके भाग जाते, कभी चुटकी काटकर भाग जाते परिणाम स्वरूप जब काकी रोती तब भी उन पर कोई ध्यान नहीं देता। 

जिस दिन पंडित बुद्धिराम के बड़े बेटे मुखराम का तिलक था उस दिन भी काकी को किसी ने खाना नहीं पूछा। जब वह सरकते-सरकते खुद ही पकवान वाली जगह पर आ पहुँची तो रूपा की कटु वाणी कुछ इस प्रकार थी – “ऐसे पेट को आग लगे, पेट है या भाड़? कोठरी में बैठते हुए क्या दम घुटता था? अभी मेहमानों ने नहीं खाया भागवान को भोग नहीं लगा, धैर्य न हो सका? आकर छाती पर सवार हो गई। जल जाए ऐसी जीभ। दिन भर खाती न होती तो जाने किसकी हांडी में मुहँ डालती? गाँव देखेगा तो कहेगा कि बुढिया भरपेट खाने को नहीं पाती तभी इस तरह मुँह बाए फिरती है। डायन न मरे न मांचा झोडे। नाम बेचने पर लगी है। नाक कटवा कर दम लेगी। इतनी ठूंसती है ना जाने कहां भस्म हो जाता है। भला चाहती हो तो जाकर कोठरी में बैठो, जब घर के लोग खाने लगेंगे तुम्हें भी मिलेगा। तुम कोई देवी नहीं हो कि चाहे किसी के मुँह में पानी न जाए, परन्तु तुम्हारी पूजा पहले ही हो जाए”।     

काकी अपनी कोठरी में चली गई बहुत देर बाद भी जब खाना न आया तो दोबारा बाहर आ गई देखा तो मेहमान अभी खा ही रहे थे, इस बार काकी को पंडित बुद्धिराम द्वारा घसीटा गया। 

कुछ देर बाद पंडित बुद्धिराम की छोटी बेटी लाडली पिटारी में छिपाकर कुछ पूड़िया लाई जिसे खाकर काकी की भूख और बढ़ गई। काकी ने लाड़ली से कहा मुझे वहाँ ले चलो जहाँ मेहमानों ने खाना खाया है, परिणाम स्वरूप लाडली काकी को वहाँ ले गई। काकी ने मेहमानों की जूठी पत्तलों से बचा खाना खाना शुरू कर दिया, आधी रात हो चुकी थी। इस वक्त रूपा की नींद खुली उसने बाहर आकर देखा की एक पंडिताइन दूसरों की पत्तल से खाना चुन चुन कर खा रही है तो रूपा की आँखों से आँसू बहने लगे। रूपा ने तुरंन्त खाने की थाली सजाई और काकी को खाने के लिये दे दिया। काकी खाने की थाल देखकर सब वैसे ही भूल गई जैसे एक बच्चा मिठाई पाकर सब मार भूल जाता है। 


बूढी काकी कहानी की समीक्षा

बूढी काकी काहनी में बुजुर्गों को नज़रअंदाज किये जाने का पता तो चलता ही है, साथ ही समाज में मौजूद अन्य कमियों का भी पता चलता है। बच्चो का मन कोरा कागज है जिस पर लिखने के लिये प्रत्यक्ष रूप से लिखा जाना आवश्यक नहीं है। आस-पास के परिवेश से की कलम बच्चो के मन पर अपने आप ही चलने लगती है। इस कहानी में माता-पिता बूढ़ी काकी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, परिणाम स्वरूप बच्चे भी काकी के साथ अत्यधिक बुरा व्यवहार करते हैं जैसे पानी की कुल्ली करना, चुटकी काटकर भागना आदि। 

इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने जो स्थिति बताई है, ऐसा व्यवहार अपनी संतान द्वारा भी किया जाता है, लेकिन प्रेमचंद ने इस सत्य से पर्दा उठाने के लिये अन्य संबन्ध (भतीजे) का इस्तेमाल किया है। 


निष्कर्ष -

इस काहानी में समाज के बुजुर्गों की स्थिति का चित्रण किया है। कहानी के परिणाम स्वरूप जो तथ्य स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, वह यह है कि जब तक हमारी सेहत अच्छी है। हमारा शरीर हमारा साथ दे रहा है तब तक सारे संबंन्ध हमारे अपने हैं जैसे ही हमें किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। हम उन पर बोझ बन जाते हैं। 

माता-पिता की अपनी संतान ही उनके साथ ऐसा व्यवहार करती है जैसे घर में पड़ा कोई पुराना समान हो। कहानी “चीफ की दवात” में इसी स्थिति की दूसरी झलक देखने को मिलती है।

बुजुर्गों के हित (संरक्षण) के लिये भी कानून बनाए जाने चाहिये और यदि ऐसे कानून बने हैं तो इसका पता नगरिको को होना चाहिए। 

     

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by Sunaina 




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