क्या मोबाइल निर्धारित करेगा विद्यार्थियों का भविष्य?


मोबाइल की आवश्यकता-

हमारी जीवन शैली में मोबाइल ने विशेष स्थान ले लिया है। इंसान एक दिन भोजन के बिना रह सकता है, लेकिन एक दिन बिना मोबाइल के रहने का प्रण नहीं ले सकता। यदि वह ऐसा करना भी चाहें तो संभव नहीं हो पाता क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में सबसे अधिक सहायक यंत्र मोबाइल बन गया है, जैसे नौकरी, बिजनीस, पढाई, यहाँ तक कि घरेलू उत्सव में भी मोबाइल की अवश्यकता अधिक हो गई है।


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मोबाइल की आदत -

मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि वर्तमान में फोन हमारे लिए क्या महत्व रखता है। सोने से पहले और उठने के बाद जो उपकरण सबसे पहले हमारे हाथ में होता है उसका नाम मोबाइल ही है। गर्मी के मौसम में भी सफर के दौरान हमारे पास पानी हो या न हो लेकिन हाथ में मोबाइल अवश्य होता है। कॉरोना काल से पहले फोन की आदत 18 वर्ष पूरे कर चुकें लोगों को ही थी जैसे - कॉलेज छात्र, नौकरी करने वाले लोग, गृहणी आदि। 

कॉरोना काल के दौरान ऑनलाइन क्लास के परिणाम स्वरूप बच्चे भी इस आदत का शिकार हो गये हैं। स्थिति यह हैं कि अगर बच्चों को एक वक्त का भोजन न दिया जाये तो उन्हें मंजूर हैं लेकिन फोन उन्हें न मिले यह मंजूर नहीं है। अर्थात फोन उनकी प्रथमिक्ता बन चुका है।

संसार में मैजूद लगभग प्रत्येक वस्तु के फायदें और नुकसान हैं। इसी तरह मोबाइल के भी अनेक फायदे और नुकसान हैं।


मोबाइल के फायदे-

मोबाइल से इंसान के लगभग सारे काम आसान हो गयें हैं। जैसे – संचार सुविधा, ट्रांजेकशन, पूरी दुनिया की जानकारी प्राप्त करना, ऑनलाइन सुविधा के माध्यम से घर बैठे सारे काम (ऑनलाइन भोजन ऑडर करना, टिकेट बुक करना आदि) करना, मनोरंजन के उपयोग में लेना, मैप के माध्यम से अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचना, किसी भी उत्सव की यादें बटोरने के लिये कैमरे का इस्तेमाल करना, परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में एक छोटा कम्पयूटर है। हर वह काम जो कुछ साल पहले तक मात्र कम्पयूटर से सम्भव था आज वह मोबाइल से किया जा सकता है। 


मोबाइल के नुकसान -

मोबाइल के अंदर की दुनिया बनाबटी है। यह तो सत्य है कि घर बैठे मोबाइल के माध्यम से पूरी दुनिया से जुड़ा जा सकता है लेकिन साथ ही यह भी सत्य है कि मोबाइल की बनाबटी दुनिया ने हमें असली दुनिया से दूर कर दिया है।

एक ही परिवार के सदस्य एक ही घर में रहते हुए भी एक-दुसरे से दूर हो गये हैं। घर में जितने लोग उतने फोन हो गये हैं। किसी के पास इतना समय नहीं है कि अपनी जीवन शैली की समय सारणी के कुछ घंटे अपने परिवार के लिये भी रिजर्व करें। ऐसा भी नहीं है कि दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति ऐसा है, लेकिन अधिकतर शहरी लोगों में यह आदत देखने को मिलती है। दुखद स्थिति तो तब हो जाती है जब किसी का फोन आता है तो उससे बात करने का समय व्यक्ति निकाल लेता है, वही एक ही घर में रहते हुए अपने माता-पिता और बच्चो के पास बैठने का समय उसे नहीं होता। 


मोबाइल का विद्यार्थियों पर नकारात्मक प्रभाव-

कॉरोना काल के दौरान बच्चो की ऑनलाइन क्लास के परिणाम स्वरूप छात्र भी मोबाइल के शिकार हो गये हैं। परीक्षा समाप्त हो जाने के बाद भी बच्चो के पास फोन 24 घंटे रहता है। पढाई के अतरिक्त भी बच्चे मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। स्थिति यह है कि बच्चे न तो अब खेलना चाहते हैं न ही अपने बड़ो के पास बैठना चाहते हैं। परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि एक ही घर में रहते हुए भी बच्चों की अपनी एक अलग दुनिया है। 

जैसे ही व्यक्ति बनाबटी दुनिया का हिस्सा बनता है वैसे ही वह असली दुनिया से धीरे-धीरे दूर होने लगता है। असली दुनिया से दूर होने का अर्थ है प्रकृति से दूर होना। प्रकृति से दूर होते ही व्यक्ति धीरे-धीरे अवसाद का शिकार होने लगता है। इस बात को इस तरह समझा जा सकता है – गाँव के मुकाबले शहर में रहने वाले लोग अधिक अवसाद का शिकार होते हैं जबकि गाँव में शहर के मुकाबले सुविधाएँ कम हैं। (बेहतर है इस पर आप स्वयं विचार करें या डॉक्टर से विचार-विमर्श करके निष्कर्ष पर पहुँचे)।

मोबाइल अधिक इस्तेमाल करने से छात्र (कोई भी व्यक्ति) अवसाद का शिकार हो रहा है।

मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिएशन हमारे शरीर के लिए नुकसान देह है। 

मोबाइल के माध्यम से छात्र (कोई भी व्यक्ति) वह जानकारी भी हासिल कर रहा है जो उसके लिये ठीक नहीं है। 

वह तथ्य जो याद करने लायक है वह मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से व्यक्ति/छात्र भूल जाता है या फिर मोबाइल पर निर्भरता के कारण याद ही नहीं करता है परिणाम स्वरूप यद्दाश पर भी असर पड़ता है। 

मोबाइल के अधिक उपयोग से सबसे ज्यादा और जल्दी आँखें प्रभावित हो रही हैं। 


उपाय – 

मोबाइल हर क्षेत्र में आवश्यक हो गया है इसलिये मोबाइल को पूर्ण रूप से नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन अपने द्वारा बनाए कड़े नियम से इसके अधिक और अनावश्यक उपयोग से बचा जा सकता है। 

बच्चो को यदि उनकी शिक्षा के कारण मोबाइल देना भी पड़ता है तो अपनी निगरानी में दें, साथ इस्तेमाल करने की समय सीमा तय करें। 

जिस तरह खाना आवश्यक है उसी तरह खेलना व परिवार के साथ समय व्यतीत करना आवश्यक समझें व इसके लिये कड़े नियम बनाए और पालन करें। 

जरूरी नहीं है कि हर प्रश्न का उत्तर मोबाइल द्वारा इंटरनेट से ही हासिल किया जाये कुछ जानकारी किताबों से भी हासिल करें। इस बात पर बच्चे, बड़े सभी के द्वारा अमल किया जाना चाहिये। 

मनोरंजन मोबाइल पर रील्स देखने के स्थान पर कहानियाँ (किताब) पढ़कर भी किया जा सकता है। परिणाम स्वरूप हमारी आँखे मोबाइल द्वारा हो रहे नुकसान से बच जायेंगी।  

आप अपने स्तर पर भी उपाय कर सकते हैं साथ ही हमारे साथ साझा भी कर सकते हैं। 


Sunaina

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