निमंत्रण कहानी का सारांश व समीक्षा


निमंत्रण कहानी से निकले सवाल 

हमें क्या प्राप्त करके खुशी मिलती है?  संभवत:  वह जिसे प्राप्त करना मुश्किल हो। इसका मतबल यह है कि यदि किसी भूखे को खाना मिल जाए तो उसके लिये वही खुशी की बात होगी या सादा भोजन करने वाले को किसी दिन स्वादिष्ट या दुर्लभ भोजन मिलने की संभावना हो तो वह कितना खुश हो सकता है। तब क्या होगा जब भोजन सामने तो आए लेकिन निवाला मुहँ को न जाए। निमंत्रण कहानी इसी विषय पर आधारित है। 

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निमंत्रण कहानी का सारांश - 

इस कहनी के नायक मोटेराम शास्त्री हैं। मोटेराम शास्त्री को नेवता (निमंत्रण) आया था जो कि पंडित भोज के लिये है। मुरादापुर की रानी साहब सात ब्राहमणों को इच्छापूण भोजन कराना चाहती है। जिसके लिए मोटेराम को निमंत्रण मिला है। स्वादिष्ट और पेट भर भोजन की इच्छा के परिणाम स्वरूप मोटेराम शास्त्री अपनी पांचो संतान – अलगूराम शास्त्री, बेनीराम शास्त्री, छेदीराम शास्त्री, भवानीराम शास्त्री, फेकूराम शास्त्री को साथ ले जाने का फैसला करते हैं। अपनी पत्नी को भी भेष बदल कर ले जाने की योजना बना ली। एक ही घर से सात ब्राहमण के आने पर रानी साहब एतराज न करें इसके लिए उन्होंने अपनी सभी संतानो से कहा अपने पिता का नाम अलग-अलग बताना। 

अलगूराम के पिता का नाम – पंडित केशव पांडे, बोनिराम के पिता का नाम – पंडित मंगरू ओझा, छेदीराम के पिता का नाम – पंडित दमड़ी तिवारी, भवानीराम के पिता का नाम – गंगू पांडे, फेकूराम के पिता का नाम – सेतूराम पाठक।

पुत्रों को नाम याद कराने का प्रसंग चल ही रहा था कि इतने में पंडित मोटेराम के मित्र चिंतामणि आ गये इन दोनों में गहरी मित्रता है दोनों किसी भी निमंत्रण में साथ में भोजन करने जाया करते थे लेकिन आज उन्हें साथ लेजाकर अपने परिवार के किसी भी एक सदस्य के भोजन में कटोती करना उन्हें मंजूर नहीं था परिणाम स्वरूप उन्होंने बात को बदलने का प्रयास किया। 

चितांमणि ने अंदाज़ा लगा लिया कि कहीं निमत्रण होगा। मोटेराम के सत्य न बताने पर चितांमणि मोटेराम से नराज़गी दिखा कर चलें गए लेकिन जैसे ही फेकूराम जो सबसे छोटा पुत्र है बाहर खेलने आया तो उससे सत्य जानने का प्रयास किया इतने में मोटेराम भी अन्दर से निकल आये लेकिन चितांमणि फेकूराम को गोद में लिये अपने घर की ओर भगने लगते हैं। फेकूराम ने मिठाई का लालच पाकर बता दिया की रानी के यहाँ निमत्रंण है। 

चितांमणि और मोटेराम में लड़ाई होने लगती है जिसकी सूचना चितांमणि के घर जाकर किसी ने दी। चितांमणि की तीन पत्नियां हैं जो संकट के समय तीनों एक हो जाती थीं। तीनों ही सूचना पाते ही अपने पति की सहायता के लिये पहुँची। मोटेराम ने जैसे उन्हें आते देखा वे खुद ही मैदान छोड़ कर भाग आये। 

नौ बजे रात पंडित मोटेराम अपने पूरे परिवार के साथ रानी साहब के यहाँ पहुंचे। रानी के पूछने पर कि यह बच्चे कहां से पकड़ लाये तो मोटेराम ने कहा किसी के पास समय ही नहीं था यहाँ आने का इस्लिये हर घर से मैं एक एक बच्चा ही ले आया। 

खाना परोसा जाने लगा खाने के सुगन्ध इतनी अच्छी थी कि अब उन्हें अपने मित्र चिंतामणि की याद आई उन्हें लगा अगर वह साथ होता तो भोजन करने में अधिक अन्नद आता। रानी साहब से कहा -  मेरे एक परममित्र पंडित चिंतामणि जी हैं आज्ञा हो तो मैं उन्हें बुला लाऊँ। आज्ञा मिलने के परिणाम स्वरूप रानी साहब की मोटर लेकर गये और अपने मित्र चिंतामणि को ले आए। 

मोटेराम चिंतामणि को बुला तो लाए लेकिन चिंतामणि ने रानी के सामने स्वयं को महान और मोटेराम को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अप्रत्यक्ष रूप से दोनों में प्रतिस्पर्धा होने लगी। 

भोजन शुरू होने वाला ही था तभी अचानक एक कुत्ता आ गया और पंडित चिंतामणि के हाथ से लड्डू गिर गया। परिणाम स्वरूप पंडितो के अनुसार  भोजन अशुद्ध हो गया। रानी साहब कहती है कि रसोई भ्रष्ट हो गई। बच्चे भूखे हैं यह सोचकर मोटेराम की पत्नी कहती है कि बच्चो को कोई दोष नहीं लगता इन्हें खाना खिला देना चाहिये। 

रानी ने भंडारी से कहा बच्चो को खिला दो। फेकूराम से पूछां - क्यों फेकूंराम मिठाई खाओगे?  फेकूराम ने कहा इसलिये तो आए हैं। रानी ने कहा जितनी खओगे उतनी मिलेगी, पहले अपने पिता का नाम बताओ। मोटेराम ने विरोध किया लेकिन चिंतामणि ने रानी का समर्थन किया। मोटेराम और चिंतामणि में बहस होने लगी। 

मोटेराम अपने परिवार को लेकर रानी के यहाँ से निकल आए। अपने भाग्य को कोसते और पछताते कि क्यों मैं चिंतामणि को यहाँ बुला लाया। मोटेराम समझ गये थे कि रानी ने जानबूझ कर कुत्ते को बुलाया था। 

चितांमणि आराम से बैठकर भोजन कर रहे थे। रानी खुद उन्हें भोजन परोस रही थी। रानी ने चिंतामणि से कहा - बड़ा धूर्त है? मैं बालकों को देखतो ही समझ गयी। अपनी स्त्री को भेष बदल कर लाते उसे लज्जा न आयी। 

यह स्वीकार किया कि उसने खुद टामी को बुला लिया था। 


निमंत्रण कहानी की समीक्षा  -


कहानी में मोटेराम अपने परिवार को स्वादिष्ट व पेट भर भोजन कराने के लिये अपने बच्चो को किसी और की संतान व अपनी पत्नी को पूरूष बनाकर निमंत्रण में ले जाने की योजना बनाई गई है। जिससे यह पता चलता है कि सामन्य रूप से मोटेराम व उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिसके कारण उन्हें स्वादिष्ट और पेट भर भोजन नहीं मिलता। 

दूसरी ओर मोटेराम के मित्र चिंतामणि भी निमंत्रण में जाने के लिये और अंत में स्वादिष्ट भोजन खाने के लिये अपने ही मित्र से अनुचित व्यवहार करते हैं। साथ ही रानी के सामने मित्र के सत्य से पर्दा उठाने का पुरा प्रयास करते हैं। अर्थात एक दिन का स्वादिष्ट भोजन मित्र की मित्रता से अधिक महत्पूर्ण हैं। जिससे पता चलता है कि चिंतामणि को भी अपने घर में सामन्य रूप से सवादिष्ट भोजन की प्राप्ति नहीं होती। 

सबसे अधिक महत्पूर्ण बात यह है कि व्यक्ति ब्राहमण को भोजन क्यों करवाता है?  इससे उसे क्या लाभ होता है?  क्या अपनी पसंद के ब्राहमण को भोजन करवाना आवश्यक है या किसी भी ऐसे व्यक्ति को भोजन करवाना आवश्यक है जो भूखा हो जिसे खाने कि आवश्यकता हो। निमंत्रण कहानी में से यही प्रश्न जन्म लेते हैं।

कहानी के अनुसार रानी को जब पता चला कि मोटेराम अपने ही बच्चो को किसी अन्य की संतान बता रहें हैं और अपनी पत्नी को पुरूष बना कर लाए हैं। ऐसा करने की दुखद स्थिति को समझने के स्थान पर सबक सिखाने के लिये खाना तो परोसा लेकिन कुत्ते को बुलाकर खाना असुद्ध करवा दिया और मोटेराम व उनके परिवार को खाने नहीं दिया। परिणाम स्वरूप उन्हें व उनके छोटे-छोटे बच्चो को भूखा ही वहाँ से जाना पड़ा। वहीं दूसरी तरफ मोटेराम के मित्र चिंतामणि को सम्मान पूर्वक भोजन करवाया। 

यदि रानी ने सात ब्राहमणों को भोजन पुण्य कमाने के लिये करवाना चाहा या अपनी खुशी के लिये करवाना चाहा तो इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि मोटेराम अपने ही पूरे परिवार को साथ ले आए। दुखद बात तो यह है कि मोटेराम अपने परिवार के साथ आ गये जिसका गुस्सा उन्होंने उन्हें भूखा वापस भेज कर निकाला। 

निष्कर्ष

कहानी के अनुसार रानी ने मोटेराम व उनके परिवार क साथ जो किया वह सही है या गलत यह आप स्वयं तय कीजिये। वर्तमान में भोजन को लेकर समाज में कैसी स्थिति है यह अपने आस-पास की स्थिति देखकर विचार कीजिए। सुधार किस तरह किया जा सकता है इस पर अपनी भूमिक निभाइये।  


by Sunaina


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