नदिया के पार फिल्म में प्राकृतिक सौंदर्य (Natural beauty in the movie Nadiya Ke Paar)

 

गाँव और शहर के मकान में अंतर (Difference between village and city house)

गाँव व शहर का स्वरूप भिन्न है, यह भिन्नता सर्वप्रथम रूप/स्वरूप में दिखाई देती है। हरियाली शहर से बहुत दूर है हाँ थोड़ी बहुत हरियाली अगर नज़र आती है तो शहरों के पार्क में आती है। कारण यह है कि हर जगह मकान ही मकान हैं। मकान कई-कई मंजिल का इन मंजिलों की गिनती एक नहीं बताई जा सकती है। 5, 10, 15, 30 या इससे भी ज्यादा मंज़िल की इमारत हो मिल जाती है। परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इमारतों के कारण शहर की हरियाली दिखाई नहीं देती है। 

यदि गाँव का स्वरूप देखें तो वहाँ हरियाली आज भी मौजूद है। गाँव में कच्चे मकान यानी मिट्टी से बने मकान अधिक हैं। शहरों में हरियाली देखने पार्क जाना पड़ता है लेकिन गाँव में हर घर में हरियाली मौजूद होती है यानी घर के आँगन में ही पेड़ लगें होते हैं जो शहरों में मुमकिन नहीं है। अब प्रश्न है गाँव का प्राकृतिक स्वरूप कब तक सुंदर रहेगा यह कहना मुश्किल हैं क्योंकि विकास की चाहत ने गाँव की हरियाली पर नज़र गाड़ा ली है। वर्तमान में गाँव में भी पक्के मकान बनने लगें हैं। जिन लोगों ने पक्के मकान बनाएँ हैं उन्होंने पक्की इमारत बनाने के लिए आँगन के पेड़ काटने शुरू कर दिए हैं। जैसे आज गाँव मे पेड़ कटने लगें हैं वैसे ही किसी दिन शहरों में पेड़ कटने शुरू शुरू हुए होंगे लेकिन तब किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचा कर किए गए  विकास के कारण शहर इतना प्रदुषित हो जाएगा। 

सुविधाएँ चाहिए तो विकास आवश्यक है लेकिन विकास ऐसा होना चाहिए कि पर्यावरण को नुकसान ना पहुँचे। घर बिना पेड़ काटे भी बनाएँ जा सकते हैं। वर्तमान में इतनी सुंदर सुंदर इमारत मौजूद हैं जो किसी ना किसी ने डिज़ाइन की है परिणाम स्वरूप इमारत ऐसे भी डिज़ाइन कि जा सकती है कि पेड़ ना काटने पड़े। यादि गाँव का स्वरूप शहर जैसा हो गया तो प्रदुषण के परिणाम स्वरूप जा समस्या शहर में हो रही है वह गाँव से अछूती नहीं रहेंगी। 


नदिया के पार फिल्म में प्राकृतिक सौंदर्य (Natural beauty in the movie Nadiya ke par)

image source : https://mubi.com/films/nadiya-ke-paar-1982


नदिया के पार फिल्म का भौतिक स्वरूप (Physical appearance of the film Nadiya Ke Paar) 

प्रकृति का सुंदर स्वरूप नदिया के पार (Nadiya Ke Paar) फिल्म में देखने को मिलता है। पुरी फिल्म में गाँव का परिवेश दिखाई देता है। नायक व नायिका दोनों का घर गाँव में स्थित है। नायिका के पिता वैद हैं परिणाम स्वरूप नायिका का घर ईंटो के बना है, फिर भी नायिका के घर में प्राकृति का चित्रण दिखाई देता है। दूसरी ओर नायक एक किसान है परिणाम स्वरूप नायक का घर मिट्टी से बना है। गाँव में आज भी अत्यधिक घर मिट्टी से बने हैं यानी वह कच्चे मकान है। 

नदिया के पार फिल्म की कहानी (Story of the movie Nadiya Ke Paar) 

फिल्म की शुरूआत (नायक) चंदन के गाँव से होती है। चंदन के काका बीमार हो जाते हैं लेकिन रूपये खर्च ना हो जाए इसलिए इलाज नहीं करवाना चाहते। ओमकार और चंदन दोनों भाई ज़िद करके अपने काका का इलाज करवाना चाहते हैं परिणाम स्वरूप चंदन वैद जी को बुलाने गुंजा (नायिका)  के गाँव आता है। नदी के किनारे चंदन की मुलाकात गुंजा से होती है। गुंजा के पिता ही वैद हैं यह चंदन को पता नहीं होता परिणाम स्वरूप दोनों में नोक-झोक हो जाती है। 

चंदन वैद जी को अपने गाँव बुला लाता है और अपने काका का इलाज करवाता है। वैद जी चंदन के काका के काका का इलाज करने की कोई दाम (फीस) नहीं लेते हैं। दूसरी बार चंदन जब दबाई लेने गुंजा के घर आता है तब भी गुंजा चंदन को परेशान करती है। वैद जी गुंजा को डांटते हुए कहते हैं कि वह ऐसा न करे क्योंकि वैद जी अपनी बड़ी बेटी रूपा का विवाह ओमकार से करवाना चाहते हैं। 

चंदन के काका के ठीक होने के बाद वैद जी रूपा के विवाह का प्रस्ताव लेकर काका के पास आते हैं जिसे वे बिना किसी दहेज के स्वीकार कर लेते हैं। रूपा और ओमकार के विवाह के बाद नायक के घर में खुशहाली का महौल हो जाता है। घर में किसी महिला के ना होने से जो घर नहीं मकान लगता था अब वह घर खुशियों से चहक उठता है। 

रूपा गर्भवती होने के कारण अपनी छोटी बहन गुंजा को अपनी सहायता के लिए बुलाती है। गंजा के चंदन के यहाँ आने के बाद दोनों में प्रेम प्रंसग की शुरूआत होती है। इसी दौरान रूपा का पुत्र होता है। होली का त्योहार आता है, होली के त्यौहार के दिन ही रज्जो जो चंदन से प्रेम करती है वह गुंजा और चंदन के बीच की भावनाओं को समझ जाती है, इसलिए रज्जो काका के पास जाकर काका से कहती है गुंजा को जिस तरह बुलबाया था उसी तरह वापस भेज दो। परिणाम स्वरूप काका गुंजा को वापस गुंजा के गाँव भेजवा देते हैं। 

गुंजा और चंदन दोनों एक दुसरे को याद करते हैं, चंदन गुंजा के गाँव उससे मिलने भी आता है लेकिन दोनों का रस्ता हमवार नहीं होता। एक दिन रूपा चंदन से कहती है कि मुझे मेरे मायके ले चलो अम्मा भी याद कर रही थी। चंदन खुशी-खुशी रूपा को उसके मायके ले आता है, गुंजा और चंदन की असहजता व व्यवहार को देखकर रूपा को पता चल जाता है कि वह दोनों का विवाह करवागी। 

एक दिन रूपा सीढियों से गिर जाती है और उसकी मृत्यू हो जाती है। रूपा की मृत्यू के परिणाम स्वरूप वैद जी और चंदन के काका दोनों मिलकर ओमकार का विवाह गुंजा से तय कर देते हैं। गुंजा बहुत दुखी हो जाती है और विवाह के फेरो के दौरान वेहोश हो जाती है। इसके बाद ओमकार को चंदन और गुंजा के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चल जाता है। इसके बाद ओमकार गुंजा और चंदन का विवाह करवा देता है। 

निष्कर्ष (Conclusion)

इस फिल्म में दहेज का विरोध किया गया है। वैद जी के द्वारा पूछे जाने पर काका कहते हैं जो प्रथा समाज को डुबाये दे रही है उसे हम दूर से ही नमस्कार कहते हैं। अर्थात उन्होने दहेज लेने से मना कर दिया।  

बिना स्त्री के घर की स्थिति अच्छी नहीं होती है इसका पता ओमकार के विवाह से पूर्व ओमकार के घर के भौतिक स्वरूप से चलता है। इसका स्पष्टीकरण चंदन के द्वारा गाये गीत से भी होता है। 

प्रेम प्रसंग की सादगी गुंजा और चंदन के प्रेम मे दिखाई देती है। जिसमें गुंजा या चंदन दोनों में से किसी ने अपने प्रेम का इज़हार नहीं किया है। 

नदिया के पार फिल्म में प्राकृतिक सौंदर्य की झलक देखने को मिलती है। 


By Sunaina





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